विश्व के सभी प्राणियों में मानव की रचना आत्मा को मुक्त होने के लिए ईश्वर ने प्रदान की है | आदिकाल से ईश्वरीय वाणी वेद के अनुसार मनुष्य जीवन बिताता हुआ इस मार्ग पर चलता रहा है | महाभारत से एक हजार वर्ष पूर्व अत्यधिक वैभव संपन्न होने के कारण आलस्य, प्रमाद, भोगविलासिता के कारण अपने मूल से हटने की भूल मानव ने की और निरंतर आनंद एवं शुद्ध ज्ञान से मनुष्य दूर होता गया | 1824 ईस्वी में नव जागरण के पुरोधा महर्षि स्वामी दयानंद का जन्म हुआ | बाल्यकाल से ही ईश्वर प्रदत्त विलक्षण मेधा के चलते तर्कशक्ति का प्रयोग कर रही सही और गलत का निर्णय करना प्रारम्भ किया | दण्डी विरजानंद जी के पास आर्ष शिक्षा का अध्ययन कर कार्य क्षेत्र में अवतरित हो वेद पथ का अनुगमन करने के लिए उद्घोष किया | 1875 में आर्य समाज की स्थापना करके वैदिक मान्यताओं, संस्कारों, एवं उद्देश्यों को पूर्ण करना प्रारम्भ कर दिया | अपनी स्थापना कल से ही आर्यसमाज में फैले गुरुडम, पाखंड, अन्धविश्वास, बहुदेवतावाद, अस्पृश्यता, बालविवाह आदि का विरोध एवं गुरुकुल शिक्षा प्रणाली, नारी शिक्षा आदि समाज सुधार के कार्यों को करता आ रहा है |
कार्य की सफलता केवल कुछ व्यक्तियों के हाथ नही होती | कार्य को गति प्रदान करना प्रत्येक आर्य का सैद्धांतिक दायित्व है | मैं आप सभी आर्य भाई - बहनों से निवेदन करता हूँ कि आर्यसमाज के इस ईस्वरीय कार्य को जन - जन तक पहुँचाने का संकल्प लें | महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने अपने प्राणों कि परवाह किए बिना जिस प्रकार समाज - शोधन का कार्य किया, उसी ऊर्जा एवं शक्ति के साथ हम मिलकर कार्य करें |
समाज में शिक्षा का व्यापकता से प्रचार - प्रसार हुआ है, लेकिन विद्या और शुद्ध ज्ञान के अभाव में पाखंड, अन्धविश्वास, फलित ज्योतिष, गुरुडमवाद पहले से अधिक व्यापक हो रहा है | लोगों के पास वैदिक वैज्ञानिक सोच का नितांत अभाव है | जिनके पास विज्ञान है भी तो वैदिक चिंतन कि कमी के चलते वे सत्यार्थ का निर्णय नही कर पाते | आज और अधिक शक्ति के साथ आर्यसमाज के कार्य को गति प्रदान करनी है | आर्य समाज कि विचारधारा से जुडी शिक्षण संस्थाओं से, आर्यसमाज के प्रचारकों से, आर्यसमाज के भजनोपदेशकों से अथवा किसी भी रूप में कहीं भी कोई भी यदि ऋषि दयानंद का कार्य कर रहा है मेरा निवेदन है कि अपने शक्ति और सामर्थ्य से पूरी शक्ति से कार्य में संलग्न हो जाएं | आर्यसमाज कि सदस्यता का अभियान तीव्र गति से चलाएं | महामना मदन मोहन मालवीय जी ने आर्यसमाज के लिय कहा था कि यदि आर्यसमाज दौड़ता रहेगा तो हिन्दूसमाज चलता रहेगा, यदि आर्यसमाज चलता रहेगा तो हिन्दूसमाज खड़ा रहेगा, यदि आर्य समाज खड़ा रहेगा तो हिन्दूसमाज बैठ जायेगा, यदि आर्यसमाज बैठ गया तो हिन्दूसमाज लेट जायेगा, यदि आर्यसमाज लेट गया तो हिन्दूसमाज सो जायेगा और यदि आर्यसमाज सो गया तो हिन्दूसमाज मर जायेगा | क्या ऐसी ही परिस्थितियां आज नजर नही आ रही हैं |
आर्यसमाज के वरिष्ठ भजनोपदेशक पंडित शोभाराम प्रेमी जी ने लिखा था ' अब भी न जागे तो दुनिया में तुमको कोई जगा न सकेगा | दुश्मन हुआ है संसार अब मत धोखे में आना देशवासियों ||'
उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्यवरान् निबोधत | क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया | दुर्गं पथस्तत् कवयः वदन्ति ||
उठो, जागो और श्रेष्ठ लोगों के पास अपने कर्तव्यों को जानें तभी कल्याण होगा |
नान्य पन्था विद्यते अयनाय |
अन्य कोई मार्ग नहीं है |